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आपने भी अपने आस-पास ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा जो इंटेलिजेंट होने और कठिन परिश्रम करने के बाद भी बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हो पाते हैं। ऐसे उदाहरण अक्सर देखने को मिलते हैं, जिन पर हम अचरज करते हैं। इसके लिए जो बात अहमियत रखती है, वह है इमोशनल इंटेलिजेंस यानी भावनात्मक बुद्धिमत्ता।
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ईक्यू का जमाना
पहले लोग सिर्फ आईक्यू के आधार पर ही व्यक्ति की दक्षता का परीक्षण करते थे। इसके बाद आया एसक्यू (स्पिरिचुअल कोशियंट) और अब ईक्यू यानी इमोशनल कोशियंट ने इसकी जगह ले ली है।
भावनाओं को करें काबू
भावनात्मक बुद्धिमत्ता का मतलब यह नहीं होता है कि आप भावुक न हों। कई लोग औरों की तुलना में बहुत ज्यादा भावनात्मक व संवेदनशील होते हैं, फिर भी दूसरों के सामने वे ऐसा जाहिर नहीं होने देते। वे अपनी भावनाओं को अच्छी तरह से काबू करना जानते हैं। महिलाओं का बात-बात में रोना, आंसू टपकाना और पुरुषों का जब-तब गुस्सा करना ऐसे भाव हैं, जिन पर काबू न करना उन्हें अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में नुकसान पहुंचाता है। आज समय में जरूरी है कि आप अपने व्यवहार संयत रखें और अपनी कमजोरियों के सामने घुटने टेकने के बजाय उनमें बाहरी तौर पर बदलाव लाएं। अपने स्वभाव में बदलाव लाना आसान नहीं, लेकिन आप प्रकट तौर पर अपने व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं।
भावुकता में न लें निर्णय
यदि आप अपना कोई निर्णय खुशी, गुस्से, दुख या ईष्र्या जैसे भावनाओं में बहकर करते हैं तो आपको इसमें सुधार करने की जरूरत है। याद रखें, किसी का सफल होना या न होना उस व्यक्ति द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करता है।
करें सुधार
इमोशनल कोशियंट आपके अंदर कोई अचानक से विकसित नहीं होती। बचपन से ही हमें रोजमर्रा के जीवन में इसके लिए प्रशिक्षण मिलता है, लेकिन आप अपने व्यवहार का अप्रत्यक्ष रूप से अध्ययन कर इसे सुधार जरूर सकते हैं।
खुद की कमजोरियों का मूल्यांकन करने के बाद जानें कि निर्णय लेते समय आपका व्यवहार कैसा होता है? यदि इस दौरान भावनाएं आप पर हावी होती हैं तो इस पर काबू करना सीखें। यदि आप आवेश में समझदारी से निर्णय नहीं कर पा रहे हैं तो उस समय कोई निर्णय न करें, सब कुछ समय पर छोडें। उचित समय आने पर निर्णय लें।
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